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Trump vs. India: Dosti में दरार या Election Strategy? जानें पूरा Game

ट्रंप की धमकी और भारत का पलटवार: दोस्ती, व्यापार और भू-राजनीति का जटिल खेल

एक समय था जब "हाउडी, मोदी!" और "नमस्ते ट्रंप" जैसे भव्य आयोजनों में भारत और अमेरिका की दोस्ती की मिसालें दी जाती थीं। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की व्यक्तिगत केमिस्ट्री दुनिया भर में चर्चा का विषय थी। लेकिन आज, वही डोनाल्ड ट्रंप, जो दोबारा व्हाइट हाउस पहुंचने की दौड़ में हैं, भारत पर तीखे हमले कर रहे हैं, जिससे दोनों देशों के संबंधों के भविष्य पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह लग गया है।

यह सिर्फ एक बयानबाजी नहीं है, बल्कि एक जटिल मुद्दा है जिसमें व्यापार, राष्ट्रीय हित और बदलती वैश्विक भू-राजनीति की कई परतें शामिल हैं। आइए इस पूरे मामले का गहराई से विश्लेषण करें।

विवाद की जड़: ट्रंप के तीखे आरोप क्या हैं?

हाल के हफ्तों में, डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के खिलाफ कई आक्रामक बयान दिए हैं। उनके आरोपों के केंद्र में मुख्य रूप से तीन बातें हैं:

  1. रूस से तेल खरीदना: ट्रंप का सबसे बड़ा आरोप यह है कि भारत भारी मात्रा में रियायती रूसी तेल खरीदकर "रूस की युद्ध मशीन को ईंधन दे रहा है"। उनका दावा है कि भारत इस तेल को खरीदकर और फिर उसे बड़े मुनाफे पर बेचकर रूस की आर्थिक मदद कर रहा है, जबकि अमेरिका और उसके सहयोगी रूस पर प्रतिबंध लगाकर उसे कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं।

  2. टैरिफ का मुद्दा: ट्रंप ने भारत को "टैरिफ का बादशाह" (Tariff King) करार दिया है। उनका लंबे समय से यह मानना रहा है कि भारत अमेरिकी उत्पादों, विशेष रूप से हार्ले-डेविडसन मोटरसाइकिलों जैसी वस्तुओं पर अन्यायपूर्ण रूप से उच्च शुल्क लगाता है। उन्होंने धमकी दी है कि अगर वह दोबारा राष्ट्रपति चुने गए तो भारतीय सामानों पर भी उतना ही भारी "पारस्परिक टैरिफ" लगाएंगे।

  3. अविश्वसनीय व्यापारिक भागीदार: इन आरोपों के आधार पर, ट्रंप ने भारत को एक ऐसा देश बताया है जो व्यापार के मामले में भरोसे के लायक नहीं है। यह उस धारणा के बिल्कुल विपरीत है जो उनके अपने राष्ट्रपति काल में बनाई गई थी।

indian vs trump
                                              this image generated by AI 

भारत का कड़ा और सधा हुआ जवाब

ट्रंप के इन आरोपों पर भारत ने चुप्पी साधने के बजाय बेहद मजबूती और तथ्यों के साथ जवाब दिया है। भारत सरकार ने अमेरिकी रुख को "अनुचित और तर्कहीन" बताते हुए पलटवार किया है।

  • अमेरिका को आईना दिखाया: भारत के विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि अमेरिका और यूरोपीय संघ खुद रूस के साथ महत्वपूर्ण व्यापार कर रहे हैं। भारत ने बताया कि अमेरिका अपने परमाणु ऊर्जा उद्योग के लिए रूस से यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड और अपने ऑटोमोबाइल उद्योग के लिए पैलेडियम जैसी महत्वपूर्ण सामग्री का आयात कर रहा है। यह तर्क देकर भारत ने यह साबित करने की कोशिश की है कि व्यापारिक प्रतिबंधों के मामले में दोहरा मापदंड अपनाया जा रहा है।

  • राष्ट्रीय हित सर्वोपरि: भारत ने साफ कर दिया है कि उसकी विदेश और व्यापार नीति उसके अपने राष्ट्रीय हितों से तय होती है, किसी बाहरी दबाव से नहीं। यूक्रेन युद्ध के बाद जब वैश्विक ऊर्जा बाजार में उथल-पुथल मची और पारंपरिक आपूर्तिकर्ताओं ने अपना तेल यूरोप की ओर मोड़ दिया, तो भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए रियायती रूसी तेल का विकल्प चुनना पड़ा। दिलचस्प बात यह है कि भारत ने यह भी याद दिलाया कि उस दौरान अमेरिका ने खुद भारत को बाजार को स्थिर करने में मदद के लिए रूसी तेल खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया था।

पर्दे के पीछे क्या है? तनाव के असली कारण

यह तनाव केवल सतह पर दिख रहे आरोपों तक सीमित नहीं है। इसके पीछे गहरे आर्थिक और भू-राजनीतिक कारण हैं:

  • 'अमेरिका फर्स्ट' बनाम 'मेक इन इंडिया': ट्रंप की विचारधारा "अमेरिका फर्स्ट" पर केंद्रित है, जिसका अर्थ है अमेरिकी उद्योगों और नौकरियों की रक्षा करना। वहीं, पीएम मोदी की "मेक इन इंडिया" पहल का उद्देश्य भारत को एक वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनाना है। इन दोनों राष्ट्रवादी आर्थिक नीतियों में स्वाभाविक रूप से टकराव की संभावना है।

  • चुनावी बयानबाजी: कई विशेषज्ञ इसे ट्रंप की चुनावी रणनीति का हिस्सा मानते हैं। अपने कट्टर समर्थकों को यह संदेश देने के लिए कि वह अमेरिका के हितों के लिए किसी भी देश से भिड़ सकते हैं, भारत एक आसान निशाना हो सकता है।

  • चीन का कोण: यह सबसे महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक पहलू है। अमेरिका, चाहे कोई भी राष्ट्रपति हो, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए भारत को एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार के रूप में देखता है। भारत QUAD (चतुर्भुज सुरक्षा संवाद) का एक प्रमुख सदस्य है। ऐसे में, भारत पर अत्यधिक दबाव बनाना या व्यापार युद्ध छेड़ना अमेरिका के अपने दीर्घकालिक रणनीतिक हितों के लिए नुकसानदायक हो सकता है।

आगे की राह: क्या होगा भविष्य?

ट्रंप और भारत के बीच यह तनाव एक दोराहे पर खड़ा है। इसके भविष्य की दिशा कुछ बातों पर निर्भर करेगी:

  1. अमेरिकी चुनाव का परिणाम: अगर ट्रंप चुनाव जीतते हैं, तो यह देखना होगा कि क्या उनकी यह बयानबाजी वास्तविक नीति में बदलती है या यह सिर्फ एक शुरुआती सौदेबाजी की रणनीति थी।

  2. कूटनीतिक संवाद: दोनों देशों के बीच पर्दे के पीछे कूटनीतिक बातचीत जारी रहेगी ताकि किसी बड़े व्यापार युद्ध को टाला जा सके।

  3. भारत का आत्मनिर्भर रुख: भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह अपनी रणनीतिक स्वायत्तता से समझौता नहीं करेगा। वह अमेरिका के साथ अच्छे संबंध चाहता है, लेकिन अपनी शर्तों पर।

निष्कर्ष

डोनाल्ड ट्रंप और भारत के बीच हालिया तनाव दोस्ती और व्यापार के बीच संतुलन की एक कठिन परीक्षा है। यह हमें याद दिलाता है कि अंतरराष्ट्रीय संबंध व्यक्तिगत केमिस्ट्री से कहीं बढ़कर राष्ट्रीय हितों पर आधारित होते हैं। जहाँ एक ओर ट्रंप के बयान चिंताजनक हैं, वहीं दूसरी ओर भारत का आत्मविश्वास से भरा जवाब एक नए और मुखर भारत की तस्वीर पेश करता है जो वैश्विक मंच पर अपने हितों की रक्षा के लिए पूरी तरह से तैयार है। आने वाला समय ही बताएगा कि यह तनाव एक अस्थायी तूफान साबित होता है या फिर भारत-अमेरिका संबंधों में एक नए, अधिक यथार्थवादी और चुनौतीपूर्ण अध्याय की शुरुआत है।

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